khabarworld24 -रायपुर ।छत्तीसगढ़ में खनन और पर्यावरण को लेकर विवाद लगातार बढ़ रहा है, विशेषकर आदिवासी इलाकों में। राज्य के आदिवासी समुदाय के...
khabarworld24 -रायपुर ।छत्तीसगढ़ में खनन और पर्यावरण को लेकर विवाद लगातार बढ़ रहा है, विशेषकर आदिवासी इलाकों में। राज्य के आदिवासी समुदाय के लिए जंगल, जमीन, और प्राकृतिक संसाधन आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। खनन परियोजनाओं के कारण इन संसाधनों के नुकसान और विस्थापन का खतरा आदिवासी लोगों को सीधे प्रभावित कर रहा है, जिससे ये मुद्दे चुनावी बहस का हिस्सा बन गए हैं।
खनन से उत्पन्न विवाद के प्रमुख कारण:
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आदिवासी भूमि पर खनन परियोजनाएँ: छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी बहुल क्षेत्रों में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है, जैसे बस्तर और सरगुजा। इन क्षेत्रों में कोयला, लौह अयस्क, और बाक्साइट के भंडार हैं। खनन कंपनियों द्वारा इन संसाधनों के दोहन के लिए जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है, जिससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन हो रहा है और उनके पारंपरिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
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पर्यावरणीय प्रभाव: बड़े पैमाने पर खनन से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ा है। जंगलों की कटाई, जल स्रोतों का दूषित होना, और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट ने इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाया है। जंगल और पर्यावरण की रक्षा करने वाले आदिवासी समुदाय इस पर गहरी चिंता जता रहे हैं।
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विस्थापन और पुनर्वास: खनन परियोजनाओं के कारण हजारों आदिवासी परिवारों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी है। उनका मानना है कि खनन कंपनियों द्वारा वादा किया गया पुनर्वास और मुआवजा उचित नहीं है, और यह उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डाल रहा है।
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राजनीतिक मुद्दा: राज्य में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, ये मुद्दे राजनीतिक दलों के लिए अहम बन गए हैं। कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य दल आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए खनन और विस्थापन के मुद्दों पर विभिन्न रुख अपना रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी सरकार की ओर से आदिवासी अधिकारों की रक्षा करने का वादा किया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खनन परियोजनाओं के चलते होने वाले विकास और रोजगार को प्राथमिकता दी है।
आदिवासी समुदाय की मांगें:
- जमीन और जंगल की सुरक्षा: आदिवासी समुदाय अपनी जमीन और जंगल पर अधिकार की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें जमीन और संसाधनों पर स्वामित्व का हक मिलना चाहिए।
- न्यायसंगत पुनर्वास: खनन से विस्थापित होने वाले लोगों के लिए उचित मुआवजा और पुनर्वास की मांग भी प्रमुख है। वे चाहते हैं कि कंपनियों और सरकार द्वारा दी जाने वाली पुनर्वास योजनाएँ उचित हों और उनके हितों का ध्यान रखा जाए।
- पर्यावरण संरक्षण: आदिवासी समुदाय जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए मजबूत कानूनों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनके भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
खनन से होने वाले लाभ:
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आर्थिक विकास: खनिज संसाधनों के दोहन से छत्तीसगढ़ में भारी राजस्व प्राप्त होता है। यह राज्य की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देता है, खासकर कोयला, लौह अयस्क, बाक्साइट और अन्य खनिजों की निकासी से। छत्तीसगढ़ देश का एक प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य है।
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रोजगार सृजन: खनन उद्योग ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार दिया है। इसके अलावा, खनन परियोजनाओं से जुड़ी अन्य सेवाओं जैसे परिवहन, मशीनरी, और निर्माण में भी रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
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औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास: खनन के कारण औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे नए उद्योग स्थापित होते हैं। इसके साथ ही, सड़क, बिजली, और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास भी तेजी से होता है।
खनन से होने वाली हानियां:
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पर्यावरणीय नुकसान: बड़े पैमाने पर खनन से जंगलों की कटाई, जल प्रदूषण, और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट होती है। खासकर खनन वाले क्षेत्रों में जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान होता है, जिससे स्थानीय वन्यजीव और इकोसिस्टम खतरे में आ जाते हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से जलवायु परिवर्तन पर भी असर पड़ता है।
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आदिवासी समुदायों का विस्थापन: खनन परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण के कारण आदिवासी और स्थानीय लोग अपने पारंपरिक निवास स्थान से विस्थापित हो रहे हैं। यह विस्थापन उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरे में डालता है। आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों पर निर्भर रहते हैं, और खनन परियोजनाओं के कारण उनका पारंपरिक जीवन प्रभावित हो रहा है।
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स्वास्थ्य पर प्रभाव: खनन से उत्पन्न धूल और रासायनिक पदार्थों से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विशेषकर कोयला खनन वाले क्षेत्रों में वायु और जल प्रदूषण के कारण सांस संबंधी बीमारियों में वृद्धि होती है।
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जल संकट: खनन गतिविधियों के कारण जल स्रोतों का दोहन और प्रदूषण भी होता है। इससे भूजल स्तर गिरता है और स्थानीय लोगों को पीने के पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ में खनन से होने वाले लाभ और हानियों के बीच संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है। इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, स्थायी खनन (sustainable mining) की नीतियों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि खनन के लाभों का संतुलित और दीर्घकालिक उपयोग हो सके, और पर्यावरण व समाज को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
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