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देश में बढ़ती मंहगाई को लेकर सरकार रोज नए बहाने जनता के सामने रखती है देश की जनता इस मंहगाई को झेल नही पा रही है लेकिन सरकार इस पर किसी भी प्रकार से नियंत्रण नहीं कर पा रही है सरकार जनता की जेब को ढीला करने का हर संभव प्रयास कर रही है

  गुलाब पटेल  आज डीजल और पेट्रोल के दाम आसमान को छूने लगे है सरसो तेल 200 ₹प्रति किलो पर पहुंच गया है जिसके कारण गरीब मजदूर वर्ग तेल की जगह ...

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गुलाब पटेल 

आज डीजल और पेट्रोल के दाम आसमान को छूने लगे है सरसो तेल 200 ₹प्रति किलो पर पहुंच गया है जिसके कारण गरीब मजदूर वर्ग तेल की जगह पानी में उबालकर सब्जी को खाने लगा है। जहां एक तरफ मोदी सरकार गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने का प्रयास कर रही है वहीं उनके द्वारा जो मंहगाई बढ़ाई जा रही है जिसके कारण आज 1 करोड़ परिवार गरीबी रेखा के अंर्तगत और जुड़ गए है ऐसी स्थिति में हम यह कह सकते है कि सरकार की योजना गरीबों को एक वक्त का खाना खाने को मजबूर कर रही है।


मोदी सरकार आने से पहले मंहगाई उतनी नही थी ठीक उसी तरह जिस तरह देश का विकास नहीं था लेकिन इसका यह मतलब तो नही कि मंहगाई भी देश के विकास के अनुसार ही बढ़ाया जाए। मंहगाई बढ़ती है तो देश में प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होनी चाहिए लेकिन देश में मंहगाई तो बढ़ रही है लेकिन प्रति व्यक्ति आय ज्यों की त्यों है इसके साथ ही कोरोना समय में लोगों का रोजगार और छिन गया है जो सरकार को नजर ही नहीं आ रहा है या सरकार उनकी तरफ देखना ही नही चाहती है।


मोदी सरकार में आने से पहले भाषणों में जिस प्रकार के वादे मंहगाई को लेकर किए गए थे वैसा जमीन पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है जबकि अनेक योजनाओं को लॉन्च कर चुके है उन योजनाओं का जनता तक सीधा लाभ पहुंचाना था उन योजनाओं में से एक योजना उज्जवला योजना भी है जो गैस मंहगाई को लेकर ज्यादा चर्चा में है आज की स्थिति में जिनके पास उज्जवला के तहत गैस सिलेंडर है वे अब उसका उपयोग ही नही कर पा रहे है क्योंकि गैस की बढ़ती कीमतों के कारण सिलेंडरों को घर के कोने में रख दिया गया है। उज्जवला योजना के सिलेंडर आज की स्थिति में केवल 10 प्रतिशत लोग ही भरवा पा रहे है। 


जहां 2014 में या उससे पहले डीजल , पेट्रोल और गैस के दाम जनता की आय के अनुसार थे अब वे उनकी आय से बाहर होते दिखाई दे रहे है। आम जनता पर मंहगाई की मार जीने को प्रभावित कर रही है। मजदूर वर्ग पानी से खाना पकाने लगे है कुछ लोग दिन भर के लिए सुबह ही सब्जी बना लेते है जिसके कारण एक बार का तेल बच सके।

देश में बढ़ती मंहगाई को लेकर सरकार के मंत्री किसी भी प्रकार से जवाब नहीं दे रहे है डीजल और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार का हवाला देते हुए अपने को जनता के सवालों से अलग थलग कर लेती है सरकार का जनता के साथ यूं आंख मिचौली खेलना मजदूर वर्ग के रोने का कारण बना हुआ है।


रोजगार को लेकर सरकार के पिछले वादों की याद किया जाए तो हर साल लाखों युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था लेकिन आज की स्थिति में करोड़ों युवा बेरोजगार घूम रहे है सरकार का ध्यान उनकी तरफ है ही नही, सरकार तो केवल चुनावी रंगो में रंग जाती है चुनाव के मातहत ही देश की जनता से लुभावने वादे किए जाते है जिसे जनता अपने सपने मान बैठती है लेकिन इन सपनों को साकार करने वाला कोई दूसरा होता है यह जनता उस समय भूल जाती है जिसके कारण ही जनता बाद में सरकार को उनके पिछले वादे याद तो दिलाना चाहती है लेकिन सरकार जनता की सुनती कहां है। 


वर्तमान सरकार आज देश में अपने अनुसार कार्य कर रही है जहां एक तरफ देश के पीएम मन की बात के माध्यम से जनता से सीधा संवाद करते है वैसा ही अगर जनता से उनकी समस्यों और देश में बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी को लेकर पूछने लगे और उनकी आवश्यकता के अनुसार कार्य किया जाए तो देश के हर युवा के हांथ में रोजगार होगा भारत आत्मनिभर की ओर ज्यादा तेज गति से बढ़ेगा।


CMIE के मुताबिक अगस्त माह में 15 लाख लोग बेरोज़गार हुए लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नही पड़ने वाला है क्योंकि सरकार के सारे कार्य उनके मातहत ही किए जाते है जो उनकी पार्टी और कार्यकर्ता को सीधा लाभ पहुंचाते है।

आज की स्थिति में जनता ने सरकार से बहुत सी उम्मीदें छोड़ दी है केवल इस आशा में कि सरकार वस बढ़ती मंहगाई को कम कर ले। 

जनता तो सरकार से इतना ही चाहती है कि उसकी दिन भर की मजदूरी में उनका दिन भर का गुजारा हो जाए लेकिन इस मंहगाई के कारण वे अपना खर्च नही उठा पा रहे है। इसका कारण मंहगाई के साथ रोजगार का ना मिलना पाना है। 


देश में मंहगाई हर वस्तु पर बढ़ा दी गई है लेकिन किसानों की फसल को लेकर आज भी संशय है कि किसानों की अगल अलग फसल का दाम क्या तय किया जाए? ताकि मार्केट में या साहूकारों को समस्या ना हो यह सरकार गरीब जनता से ज्यादा उद्योगपति और साहूकारों के संबंध में ज्यादा फैसला करती है उदाहरण के तौर पर किसान आंदोलन को ही ले लीजिए आज किसानों को आंदोलन करते हुए पूरे 9 माह 15 दिन हो गए है लेकिन सरकार उनकी तनिक भी बात सुनने को या मानने को तैयार नहीं है लेकिन अगर इन्ही की जगह पर साहूकार आंदोलन करते या सरकारी कर्मचारी करते तो सरकार को उल्टे पांव चलकर आना पड़ता और पहले आई भी है पिछला रिकार्ड देखे तो मोदी सरकार के काल में ही साहूकारों में मंडी के साहूकारों का आंदोलन हुआ था। 


सरकार इस मंहगाई को लेकर कुछ तो करेगी यह देश की जनता रोज सुबह उठकर सोचती है और फिर दिन भर का गुजारा करने के लिए काम की तलास में जुट जाती है।

 मजदूर वर्ग करे तो भी क्या? देश की मीडिया सरकार के कदम से कदम मिलाकर चलने लगी है जिसके कारण आम जनता की आवाज सरकार के कानों तक पहुंचती ही नही है और जैसे तैसे कुछ आवाजें पहुंचती ही है तो उनको दबा दिया जाता है जो ज्यादा सरकार के खिलाफ बोलता है तो उसे जेल भेज दिया जाता है अब तो लोग सरकार से सवाल करने से भी करताने लगे है। 

उन्हे लगता है कि अगर सरकार से सवाल किया तो कहीं UAPA की धारा न लगा दी जाए।



देश की जेलें अब अपराधी के लिए नही सरकार से सवाल करने वाले के लिए हो गई है जो सरकार से सवाल करेगा उसे जेल भेज दिया जाएगा।

किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने वाले लोग सरकार के खिलाफ हो जाते है देश का गुलाम मीडिया किसान को खालिस्तानी बताने लगता है साथ में उनके पक्ष में बोलने वालों को देश विरोधी बताने लगता है इस देश में मीडिया का इस प्रकार से जनता को डराना देश की जनता को कायर बनाना है मीडिया जनता को वही दिखाती है जो सरकार उन्हे दिखाना और बताना चाहती है।

जैसे दैनिक भास्कर ने जब सरकार से खुलकर सवाल शुरू किया तो उसके कई दफ्तरों पर इनकम टैक्स की रेत पड़ी खेर उन्हे मिला तो कुछ नही लेकिन सरकार की नीति की जनता ने जमकर आलोचना की थी।


सरकार ने डीजल , पेट्रोल और गैस के माध्यम से 23 लाख करोड़ रूपए का मुनाफा कमाया है इस पैसे को सरकार ने कहां खर्च किया है जब इसका जवाब राहुल गांधी ने सरकार से मांगा तो सरकार ने अभी तक अपनी चुप्पी नही तोड़ी है।

जनता ने भी अब यह स्वीकार कर लिया है कि सरकार अब उसकी कभी नही सुनेगा जो उसे करना है वो करेगी ही चाहे मंहगाई को लेकर हो या रोजगार और युवाओं की नौकरी का सवाल हो। इन सबके बीच सरकार में हठधर्मिता का व्यवहार भी जनता को नजर आया है जिसमे सरकार में बैठे नेताओं का जनता के प्रति जो रवैया है उनके कार्य करने का तरीका जनता की विचारधारा और आशाओं के प्रतिकूल नजर आता है जैसे चुने हुए नेता का अपने ही क्षेत्र में ना जाना उनकी समस्याओं और उनके यहां के विकास पर ध्यान न देना यह सब उनके व्यवहार को दर्शाता है। 


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