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हिन्दू युवा मँच ने की गणेशोत्सव पर्व पर नियमों को शिथिल करने की माँग

  00 झाँकी और हॉकी को बताया राजनांदगाँव शहर की पहचान. राजनांदगाँव। सँस्कारधानी राजनांदगाँव के गणेशोत्सव की गौरवशाली परंपरा को निर्बाध गति से...

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00 झाँकी और हॉकी को बताया राजनांदगाँव शहर की पहचान.

राजनांदगाँव। सँस्कारधानी राजनांदगाँव के गणेशोत्सव की गौरवशाली परंपरा को निर्बाध गति से जारी रखने और इसे अक्षुण बनाये रखने के लिए सँस्कारधानी नगरी की वर्षो पुरानी चली आ रही परंपरा के अधिकारों की रक्षा करने के महत्वकांक्षी उद्देश्य को लेकर कल जिला प्रशासन द्वारा गणेशोत्सव को लेकर जारी किए गए दिशा निर्देशों को शिथिल करने और उस पर लचीलापन अपनाने अपने तर्क संगत सुझाओं के साथ जिलाधीश तारण प्रकाश सिन्हा के नाम हिन्दू युवा मँच जिला इकाई ने डिप्टी कलेक्टर श्रीमती लता युगल उर्वशा से भेंट कर ज्ञापन सौंपा गया।

 सँस्कारधानी नगरी झाँकी और हॉकी के नाम से जानी जाती है। सँस्कारधानी नगरी में गणेशोत्सव पर्व की ऐतिहासिक और गौरवशाली परंपरा रही है। वर्तमान समय में शासन द्वारा गणेशोत्सव के आयोजन को लेकर जो दिशा निर्देश जारी किए गए हैं इससे सँस्कारधानी नगरी राजनांदगाँव की गौरवशाली परंपरा को गहरा आघात लगा है। साथ ही इस ऐतिहासिक आयोजन की अनवरत जारी श्रृंखला पर भी पूर्णविराम लग जाने का भय सता रहा है। सँस्कारधानी राजनांदगाँव की झाँकी और स्थल सजावट प्रदेश सहित देशभर में विख्यात थी। स्थल सजावट की आभा देखते ही बनती थी। दूर दूर तक ऐसे आयोजन तो क्या इस तरह के आयोजन की कॉपी करने में भी लोगो को अचरज लगता था। दशकों पहले राजनांदगाँव के लालबाग, कामठी लाईन, गुड़ाखू लाईन, रामाधीन मार्ग और जूनी हर्टरी में गणेशोत्सव पर बड़े-बड़े स्थल सजावट हुआ करते थे। अब यह ऐतिहासिक परंपरा धीरे-धीरे खत्म होने लगी है। हमे डर है कि वर्षो पुरानी झाँकी की ऐतिहासिक परंपरा भी इसी प्रकार खत्म न हो जाये। दशकों पहले जिला मुख्यालय के लालबाग क्षेत्र के दो बड़े मंडलो द्वारा बड़ी स्थल सजावट की जाती थी। जिसे देखने लोग छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों सहित महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश राज्य से भी पहुँचते थे।स्थल सजावट को लेकर तत्कालीन कलेक्टर के सख्त रवैये से नाराज़ लालबाग के दो बड़े मंडल अब स्थल सजावट नही करते। प्रशासन के इस फैसले से सँस्कारधानी नगरी की स्थल सजावट की गौरवशाली परम्परा पर ग्रहण लग चुका है। हम नही चाहते कि, प्रशासन के तुगलकी फरमान अथवा किसी निर्णय से सँस्कारधानी नगरी के गणेशोत्सव की एकमात्र बची परम्परा भी खत्म हो जाये। 


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