ग्रीष्मकालीन धान, दलहन व तिलहन फसलों में होने वाले रोग और ब्याधि के नियंत्रण के बताए उपाय रायपुर । राज्य के कृषि मौसम विभाग के वैज्ञा...
ग्रीष्मकालीन धान, दलहन व तिलहन फसलों में होने वाले रोग और ब्याधि के नियंत्रण के बताए उपाय
रायपुर । राज्य के कृषि मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने प्रदेश के किसानों को मौसम आधारित कृषि की सलाह दी है। ग्रीष्मकालीन धान, दलहन, तिलहन, मूंगफली, गन्ना फसल एवं सब्जियों में होने वाले रोग-ब्याधि के नियंत्रण तथा फसलों के देखभाल के बारे में कई उपयोगी सुझाव दिए हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि वर्तमान समय में ग्रीष्मकालीन धान पुष्पन अवस्था में है। आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए धान की फसल में तना छेदक कीट का प्रकोप बढ़ सकता है, अतएव इसकी सतत् निगरानी एवं आवश्कतानुसार सिंचाई करें। ग्रीष्मकालीन धान की फसल में तना छेदक कीट के नियन्त्रण हेतु रायनेक्सीपार 20 प्रतिशत SC 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर या फिपरोनिल 5 प्रतिशत SC @ 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
दलहन फसलों में आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए थ्रिप्स कीट की उपस्थिति की जाँच करें। तिलहन फसलों में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें। मूंगफल्ली के फसल फल्ली बनने की अवस्था में है, इसके लिए निश्चित अंतराल में सिंचाई करें। गन्ना फसल कल्ले बनने की अवस्था में है, गन्ने की फसल में आवश्यकता अनरूप सिंचाई करें।
सब्जी की बेल वाली फसलों को मचान-सहारे को ठीक करें तथा कुंदरू एवं परवल में उर्वरक देवें। वर्तमान में वाष्पन की दर 7-10 मि.मी.-प्रतिदिन के आसपास हैं, जिसके कारण रबी फसलों जैसे धान, मूंगफली एवं साग-सब्जियों की जल मांग में वृद्धि होगी। अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि फसलों में सिंचाई के अंतराल को कम करें, जिससे मृदा में पर्याप्त नमी बनी रहे तथा पौधों को अधिक तापमान के कारण पढ़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सके। गर्मी मौसम में उत्पादन होने वालीे साग-सब्जी की फसलों की भी सतत निगरानी रखे एवं आवश्कतानुसार उपयुक्त सिचाई करें। ग्रीष्मकालीन शकरकंद की रोपाई भी शुरू करने की सलाह किसानों को दी गई है।
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि फल-फूल आम, अनार एवं नीबूं पेड़ों में थाला बनाकर प्रत्येक 4-5 दिन में हल्की सिंचाई करें। अप्रैल एवं मई के महीने में फलदार वृक्ष रोपण हेतु गड्डा खोदकर छोड़ देवें एवं बारिश के पश्चात् रोपाई करें। केला एवं पपीता के पौध में सप्ताह में एक बार पानी अवश्य देवें तथा टपक सिंचाई पद्धति में सिंचाई समय बढ़ाये।
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