रायपुर। एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल ने उड़ीसा निवासी एक 13 वर्षीय बिटिया की रीढ़ की हड्डी की विकृति दूर कर उसे नया जीवन दिया...
रायपुर। एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल ने उड़ीसा निवासी एक 13 वर्षीय बिटिया की रीढ़ की हड्डी की विकृति दूर कर उसे नया जीवन दिया है। रीढ़ की हड्डी की विकृति के कारण बच्ची के दिल में नस संबंधी गंभीर समस्या का निदान किया गया। यह बच्ची पेरिफेरल कैंप में डॉक्टरों को मिली थी। डॉक्टरों ने बताया कि भारत में यह बीमारी एक हजार बच्चों में से आठ में पाई जाती है, जिसका रायपुर में भी सफलतापूर्वक उपचार किया जा रहा है। एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने शासन से अपील की है कि ऐसे बच्चे को नया जीवन देने यदि सरकार आगे आती है तो अस्पताल प्रबंधन नि:शुल्क उपचार करेगी। वहीं डॉक्टरों ने बच्ची के विषय में बताया कि कुछ वर्षों से भागने , साइकिल चलाने, तेज चलने और भारी काम करते वक्त सांस लेने में तकलीफ होती थी ।
जांच करने पर पाया गया कि उसे लार्ज पीडीए की समस्या है और उसकी रीढ़ की हड्डी भी ऊपर से और दाएं ओर से मुड़ी हुई थी । मेडिकल भाषा में इसे काइफोस्कोलियोसिस कहते हैं । और रीढ़ की इस विकृति के कारण छाती के आकार में भी विकृति आ गई थी।
डॉ. किंजल बक्शी , ( बात्य हदय रोग विशेषज्ञ , एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल ) द्वारा आगे की जांच में यह पुष्टि हो गई की उसे लार्ज पीडीए की समस्या है और इकोकार्डिओग्राम के जरिये एक और विकृति सामने आई , जिसके तहत मुख्म नसें जो शरीर के निचले हिस्से से रक्त को निकालती है और हृदय के दाये हिस्से में पहुंचाती हैं ( इन्फीरियर वेना कावा ) ।
ऐसे समझिए बीमारी को
डॉ किंजल बक्शी , ने समझाया की जहां आम लोगों में एक सामान्य आकार की नस हदय के दायें हिस्से में खुलती है , वहां इस बच्ची में सिर्फ एक छोटा सा चैनल नजर आया और यह अंदेशा लगाया गया कि नस सीधे हदय के दायें हिस्से में रक्त नहीं निकाल रही बल्कि एक दूसरी नस में खुल रही है जो शरीर के ऊपरी हिस्से के रक्त को हृदय तक पहुंचा रही है । पीडीए को डिवाइस थैरेपी के जरिये बंद करने के लिए इस नस की अहम भूमिका होती है , क्योंकि यही सही तरीका है और एक मुख्य रास्ता है इदप के भीतर डिवाइस के साथ पहुंचने का। डिवाइस क्लोजर से पहले एन्जियोग्राम होने पर यह सुनिश्चित हुआ के इस नस में एक दुर्लभ प्रकार की विकृति थी जिसमें यह नस का एक दूसरा प्रकार नजर आ रहा था जो बहुत जगह से मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से रुकावट की स्थिति बन रही थी । साथ ही यह सीधे हृदय के दाये हिस्से में नहीं खुल रही थी , जिसकी वजह से कोई तरीका नहीं रह गया था कि पीडीए इस रास्ते से की जा सके । यह पहली चुनौती थी । अब हमने गर्दन की एक नस ( जीसे राईट इंटरनल जगलर वेन कहते है ) के जरिये हृदय तक पहुंचे।
फिर सामने आई दूसरी चुनौती
फिर उसके बाद दूसरी चुनौती आई । क्योंकि बच्ची की रीढ़ में इतनी गंभीर विकृति थी। छाती के अंग भी अपने सामान्य स्थान पर नहीं थे। यहां तक के हृदय भी घूमा हुआ था । सामान्य तौर पर हम दायी नस से होते हुए पीडीए के जरिये हदय तक पहुंचते हैं लेकिन हृदय के घूमे हुए होने के कारण यह संभव नहीं था । इसलिए हमने स्नेरिंग तकनीक के जरिये पीडीए के विपरीत हिस्से से एक रास्ता तैयार किया। डॉ. सुमंत शेखर पाढ़ी (हदय रोग विशेषज्ञ, एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल ) कहते हैं की क्योंकि गंभीर रीढ़ की विकृति जो सर्जरी को एक बड़े जोखिम का प्रोसीजर बना देती है उसकी वजह से यह जरूरी था कि वाहिका को डिवाइस थैरेपी के जरिये बंद किया जाए । खासकर इस तरह के मामले में जहा इंटरनल जगलर वेन के जरिये प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। बेहद सावधानी और इतने बड़े दाब को सम्हालने के लिए अनुभव की जरूरत होती है । कार्डियक एनेस्थीसिया की टीम के साथ मिलकर बाल्य हृदय रोग की टीम ने बिना किसी जटिलता के पूरा प्रोसीजर सफलतापूर्वक किया गया।
नवीन शर्मा ( फैसिलिटी डायरेक्टर , एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल , रायपुर ) कहते है की रायपुर जैसे शहर में ऐसी हदय शल्य प्रक्रिया दुर्लभ है । हमारे हदय रोग की टीम एनएच की प्रतिष्ठा को बरकरार रखती है । जहां नारायणा हैल्थ को ह्दय रोग के आइकॉन के तौर पर देखा जाता है वहीं हमारी ह्दय रोग की टीम भी हमेशा ऐसे ही पेचीदा केसेस के लिए तैयार रहती है ।
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